मारवाड के राठौडो का इतिहास ( History Of Rathodu Of Marwar )
मारवाड़ के राठौडो को दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट या कन्नौज के राठौड़ो का वंशज बताया जाता हैं।
(1) राव सीहा मारवाड
– पालीवाल ब्राह्मणों की सहायता के लिए राव सीहा बदायूं से 1240 ई. में खेड़ा (बालोतरा) आता हैं। और अपनी राजधानी बनाता हैं।
– राव सीहा को – ‘राजस्थान के राठौड़ो का आदिपुरूष’ कहा जाता हैं।
– 1273 ई. में गायों की रक्षा करते हुये राव सीहा पाली के बीठू गांव में मारा जाता हैं।
– बीठू गांव में राव सीहा का स्मारक बना हुआ हैं।
(2) राव धूहडः मारवाड–
यह कर्नाटक से कुल देवी ‘नागणेची’ की मूर्ति लेकर आता हैं।
– इसे बाड़मेर गांव के नागाणा गांव में स्थापित किया गया हैं।
– इनके छोटे भाई का नाम ‘धांधल’ था। ये लोकदेवता पाबू जी के पिता थे।
(3) रावल मल्लीनाथः मारवाड–
राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता
– इन्होनें अपनी राजधानी ‘मेवानगर’ (नाकोड़ा) बनायी।
– मल्लीनाथ के नाम पर ही मारवाड़ क्षेत्र को मालाणी कहते हैं।
– भाई – ‘वीरम’ (मल्लीनाथ ने अपने बेटे जगमाल को राजा न बनाकर वीरम को राजा बना दिया।)
(4) चूण्डा मारवाड
– ‘इन्दा’ (प्रतिहार) शासको ने चूण्डा को दहेज के रूप में मण्डौर दिया।
मंडोर को राजधानी बनाया।
(5) राव जोधा 1438-1489 ई.। मारवाड
– 1459 ई. में जोधपुर शहर की स्थापना करता हैं।
– चिड़िया ढूंक पहाड़ी पर मेहरानगढ़ किला बनवाता हैं।
– मेहरानगढ़ किले की नींव ‘करणीमाता’ ने रखी थी।
– जोधा के 5 वें पुत्र बीका ने बीकानेर की स्थापना की।
(6) मालदेव 1531-1564 ई.।
– अपने पिता गांगा की हत्या करके शासक बना। इसलिए इसे पितृहंता शासक कहते हैं।
– जिस समय मालदेव का राजतिलक हुआ। तब उसके पास जोधपुर व पाली (सोजत) दो ही परगने थे।
– कालातंर में मालदेव ने अपनी साम्राज्यवादी नीति के तहत 52 युद्धों के द्वारा 58 परगने जीते थे।
पाहेबा का युद्ध 1541ई. में।
– मालदेव V/s जैतसी (बीकानेर)
– मालदेव इस युद्ध को जीतता हैं व जैतसी लड़ते हुए मारा जाता हैं।
– जैतसी का बेटा कल्याणमल शेरशाह सूरी के पास चला जाता हैं।
– मालदेव ने वीरमदेव से मेड़ता छीन लिया। – वीरमदेव भी शेरशाह सूरी से जाकर मिल जाता हैं। मालदेव-हुमायूँ सम्बन्धः- शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं जब फलौदी (जोधपुर) में था, तब उसने मालदेव के पास अपने दूत भेजे
– रायमल सानी
– अतका खां
– मीर समेद
– मालदेव ने भी सकारात्मक उत्तर दिया व हुमायूं का बीकानेर परगना देने का वादा किया।
– हुमायूं अविश्वास की वजह से जोधपुर न आकर सिंध की तरफ चला गया। गिरी सुमेल का युद्ध (जनवरी 1544 ई.)
– इसे जैतारण का युद्ध भी कहते हैं।
– मालदेव V/s शेरशाह सूरी।
– अविश्वास की वजह से मालदेव पीछे हट जाता हैं।
– मालदेव की सेना के दो सेनानायक जैता व कूपा शेरशाह के खिलाफ लड़ाई करते हैं।
– शेरशाह मुश्किल से इस युद्ध को जीत पाता हैं। अतः शेरशाह के मुह से बरबस ही निकल गया- मुठी भर बाजरे के खातिर मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता। शेरशाह ने जलाल खां जलवानी की आरक्षित टुकडी की सहायता से युद्ध जीता था।
– शेरशाह आगे बढ़कर जोधपुर पर अधिकार कर लेता हैं। खवास खां को जोधपुर सौंप दिया था।
– मालदेव सिवाणा (बाड़मेर) चला गया।
– सिवाणा को ‘राठौड़ो की शरणस्थली’ कहते हैं। शेरशाह के जाते ही मालदेव ने जोधपुर पर पुनः अधिकार कर लेता हैं।
– मालदेव की रानी उमा दे को ‘रूठी रानी’ कहा जाता हैं।
– ये जैसलमेर के लूणकरण की बेटी थी।
– इन्होनें अपना कुछ समय तारागढ़ किला (अजमेर) व अंतिम समय मेवाड़ के केलवा गांव में बिताया।
– ‘अबुल फजल’ अकबरनामा में मालदेव की तारीफ बताता हैं।
– बदायूनी – मालदेव को ‘भारत का महान् पुरूषार्थी राजकुमार’ बताता हैं।
– मालदेव की उपाधियाँ:- (1) हिन्दू बादशाह 2. हशमत वाला राजा
– दरबारी विद्वान:
– 1. ईसरदास- (1) हाला झाला री कुडंलिया (सूर सतसई) (2) देवीयाण (3) हरिरस
– 2 आशानन्द- (1) बाघा भारमली रा दूहा (2) उमादे भटियाणी रा कवित।
(7) चन्द्रसेन:- मारवाड
मालदेव ने अपने बड़े बेटे को राजा न बनाकर अपने छोटे बेटे चन्द्रसेन को राजा बनाया। अतः इसके बड़े भाई राम व उदयसिंह अकबर के पास चले गये। अकबर ने जोधपुर पर आक्रमण किया। अतः चन्द्रसेन भाद्राजूण चला गया।
– 1570 ई. में का अकबर का नागौर दरबार
1. जैसलमेर – हरराज
2. बीकानेर – कल्याणमल -अकबर की अधीनता स्वीकार की। 3. चन्द्रसेन – का बड़ा भाई उदयसिंह – (जोधपुर)
– चन्द्रसेन भी इस नागौर दरबार में गया था।
– चन्द्रसेन स्थिति को अनुकूल न देखकर यहां से भाद्रा जूण चला जाता हैं।
– अकबर भाद्राजूण पर आक्रमणकर देता हैं। चन्द्रसेन सिवाणा (बाड़मेर) चला जाता हैं।
– भटकते हुए राव चन्द्रसेन की पाली (सोजत) के पास सारण (सिंचियाई गांव) की पहाड़ियों में मृत्यु हो गयी।
– चन्द्रसेन को ‘मारवाड़ का भूला – बीसरा शासक’ कहते हैं।
– चन्द्रसेन को ‘मारवाड़ का प्रताप’ कहते हैं।
– इसे ‘प्रताप का अग्रगामी’ कहते हैं।
– महाराणा प्रताप की राजतिलक में चन्द्रसेन भी उपस्थित था।
– अकबर ने 1572 ई. में बीकानेर के रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त कर दिया।
(8) मोटा राजा उदयसिंहः- मारवाड
अपनी बेटी मानी बाई’ की शादी जहांगीर के साथ कर दी गयी। इसे इतिहास में ‘जोधाबाई’ कहा जाता
– इसे ‘जगत गोसाई’ भी कहते हैं।
– मानी बाई का बेटा ‘खुर्रम’ (शाहजहां) था।
– इस प्रकार मोटा राजा उदयसिंह जोधपुर का पहला राजा, जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। और उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए।
कल्ला रायमलोत मारवाड –
यह मोटा राजा उदयसिंह के छोटे भाई रायमल का बेटा था।
– इन्होनें सिवाणा का दूसरा साका किया। (अकबर के खिलाफ युद्ध)
– कल्ला रायमलोत ने अपनी मृत्यु से पहले ही पृथ्वीराज राठौड़’ (बीकानेर) से अपने ‘मरसिये’ लिखवा लिए।
– मरसिये मारवाड :-
किसी वीर के युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ते हुए मारे जाने पर कवि द्वारा उसकी वीरता पर लिखे जाने वाले दोहे।
(9) जसवंतसिंह 1638-1678 ई.।
– अमरसिंह- जसवंतसिंह का बड़ा भाई, ये नागौर का राजा था। मतीरे की राड (लडाई):- (1644ई.)
– बीकानेर राजा कर्णसिंह V/s नागौर का अमरसिंह
– अमरसिंह शाहजहां के दरबार में उसके मीर बख्शी (सेनापति) सलावत खां की हत्या कर देता हैं।
– अमरसिंह राठौड़ को ‘कटार का धणी’ कहते हैं।
अमरसिंह की 16 खम्भों की छतरी ‘नागौर’ के किले में बनी हैं।
– आज भी राजस्थान के ‘ख्याल व रम्मतों’ में अमरसिंह को याद किया जाता हैं।
शाहजहां के पुत्रों के उत्तराधिकारी संघर्ष में जसवंतसिंह ने दारा का पक्ष लिया।
– शाहजहां ने जसवंतसिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि दी।
– धरमत का युद्ध:- दारा V/s औरगजेब
– इस युद्ध में दारा की सेना का सेनापति जसवतसिंह था।
– दूसरे सेनापति कासिम खां से अनबन होने पर जसवतसिंह युद्ध के बीच में जोधपुर वापस आ जाता हैं।
– धरमत के युद्ध में हारकर वापस आने पर जसवतंसिंह की रानी जसवतं दे हाड़ी ने किले के दरवाजे बंद कर दिये।
– औरगंजब ने जसवंतसिंह राठौड़ को अफगानिस्तान भेज दिया। (काबुल का गर्वनर बनाकर)
– वहीं पर ‘जमरूद’ का थाना नामक स्थान पर 1678 ई. में जसवतंसिंह की मृत्यु हो जाती हैं।
– औरगंजेब ने इसकी मृत्यु पर कहा- ‘आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया।’ (धर्म का विरोध करने वाला)
– जसवतसिंह की मृत्यु के 1 साल बाद ही औरगंजेब 1679 ई. में ‘जजिया कर’ लगाता हैं।
– जसवतसिंह के बेटे पृथ्वीसिंह ने शेर के साथ लड़ाई की। औरगंजेब ने इसे विषैली पोशाक देकर मरवा दिया।
– जब जसवतसिंह की मृत्यु हुयी तब उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी।
– औरगजेब ने आगरा में इन्हें रूपसिंह राठौड़ की हवेली में नजरबंद कर दिया।
– कालान्तर में इनसे अजीतसिंह व दलथम्बन नाम पुत्र होते हैं।
– पुस्तकें –
1. अपरोक्ष सिद्धान्त सार
2. प्रबोध चन्द्रोदय
3. आनन्द विलास
4. भाषा भूषण
– दरबारी विद्वान:-
1. मुहणौत नैणसी:- (1) ‘नैणसी री ख्यात’ (पुस्तक) – इसमें जोधपुर के राजाओं की वशांवली लिखी गयी हैं। – पहली बार क्रमबद्ध इतिहास लेखन।
– (2) मारवाड़ रा परगना री विगत- जनगणना का उल्लेख। – इसे मारवाड़ का गजेटियर कहतें कहते हैं।
– मुंशी देवी प्रसाद ने मुहणौत नैणसी को राजपूताने का अबुल फजल कहा हैं।
(10) अजीतसिंह 1679-1724 ई.। मारवाड
– औरगजेब ने 36 लाख रूपये के बदले अमरसिंह के पाते इन्द्रसिंह को राजा बना दिया।
– दुर्गादास राठौड़ दोनों रानियों व राजकुमारों को लेकर वहां से निकल जाता हैं।
– अजीतसिंह को बचाने के लिए एक गौरा नाम महिला ने सहायता की थी। – ‘गौरा’ को ‘मारवाड़ की पन्नाधाय’ कहते हैं।
– मारवाड़ के राष्ट्रगीत ‘धूसों’ में गौरा का नाम लिया जाता हैं।
– गौरा की छतरी जोधपुर में बनी हैं।
– सिरोही जिले के कालिन्द्री गांव में अजीतसिंह को जयदेव पुरोहित के घर में मुकुन्ददास खिची की देखरेख में रखा जाता हैं।
– दुर्गादास औरंगजेब के बेटे अकबर से विद्रोह करवा देता हैं।
– ओरंगजेब ने दुर्गादास व अकबर में फूट डलवा दी।
– अकबर के बेटा – बुलन्द अख्तर – बेटी सफीयतुन्निसा दोनों दुर्गादास के पास रह जाते हैं,
– दुर्गादास इनकी धार्मिक शिक्षा का प्रबन्ध करता हैं। तथा कालान्तर में ईश्वरदास नागर के कहने पर औरंगजेब को सौंप देता हैं।
– औरंगजेब की मृत्यु के बाद ‘बहादुरशाह’ अजीतसिंह को जोधपुर का राजा बना देता हैं।
– अजीतसिंह मुगल बादशाह फर्रुखसियर से अपनी बेटी इन्द्रकवर की शादी करता हैं।
– यह अंतिम राजकुमारी (राजपूत) थी, जिसकी किसी मुगल बादशाह से शादी हुई।
– 23 जून 1724 को अजीतसिंह के बेटे ‘बख्तसिंह’ ने अजीतसिंह की हत्या कर दी।
– अजीतसिंह की मृत्यु पर उनकी चिंता में जानवरो ने स्वेच्छा से अपनी जान दे दी।
दुर्गादास राठौड़ः- मारवाड
पिता का नाम – आसकरण
– जन्म स्थान – सालवा
– जागीर – लुणेवा गांव।
– अजीतसिंह ने शासक बनने के बाद दुर्गादास को देश निकाला दे दिया था।
– दुर्गादास यहां से मेवाड़ महाराणा ‘अमरसिंह द्वितीय’ के यहां चला गया।
– अमरसिंह ने इसे ‘रामपुरा’ व विजयपुर की जागीरें दी।
– यहां से दुर्गादास उज्जैन चला जाता हैं।
– उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे दुर्गादास की छतरी बनी हुयी हैं।
– दुर्गादास को ‘मारवाड़ का अणबिन्धिया मोती’ तथा ‘राजपूताने का गेरीबाल्डी’ कहते हैं।
– कर्नल जेम्स टॉड इसे ‘राठौड़ो का यूलीसेज’ (उद्वारक) कहते हैं।
(11) अभयसिंह 1724-1749 ई.। मारवाड
खेजड़ली की घटना:- विक्रमी संवत 1787 ई. को भाद्रपद शुक्ल दशमी को खेजड़ली नामक गांव में अमृतादेवी नामक विश्नोई महिला अपने पति रामोजी व अपनी तीन बेटियों के साथ वृक्षों को बचाने के लिए शहिद हो गयी।
– इसमें कुल 363 लोगों ने अपना बलिदान दिया था। इसलिए आज भी भाद्रपद शुक्ल दशमी को हम शहीद
दिवस के रूप में मानते हैं।
– इसी दिन विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता हैं।
– अमृतादेवी के नाम पर सामाजिक वानिकी के क्षेत्र के लिए पुरस्कार दिया जाता हैं। (वन्य व वन्य जीव)
– दरबारी विद्वान – 1. करणीदान – सूरज प्रकाश (बिड़द सिणगार)
1. कारभाण – राजरूपका सबदार ‘सर बुलदं खान’ के
– इन दोनों पुस्तकों में अभयसिंह व अहमदाबाद के सूबेदार ‘सर बुलदं खान’ के बीच युद्ध का वर्णन हैं।
(12) मानसिंह 1803-1843 ई. तक मारवाड
– जालौर घेरे के समय ‘देवनाथ’ द्वारा मानसिंह के राजा बनने की भविष्यवाणी की।
– मानसिंह ने राजा बनते ही देवनाथ को अपना गुरू बनाया।
– नाथें के सबसे बड़े मंदिर ‘महामंदिर’ का निर्माण करवाया।
– ‘नाथचरित्र’ नामक पुस्तक लिखी।
– 1805 ई. में जोधपुर के किले में एक पुस्तकालय बनवाते हैं, जिसे ‘मानपुस्तक प्रकाश’ कहते हैं।
– 1807 ई. में ‘गिंगोली का युद्ध’ होता हैं।
– 1818 ई. में अंग्रेजी से संधि कर लेता हैं।
– इसके दरबार में कवि बांकीदास था।
– मानसिंह ने इन्हें ‘कविराज’ की उपाधि दी।- पुस्तक:- 1. बांकीदास री ख्यात 2. कुकवि बत्तीसी 3. दातार बावनी 4. मान जसो मंडन – बांकीदास ने अग्रेजो का साथ देने वाले राजाओं की निन्दा की।